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मोहब्बत अल्फ़ाज़ से बाया न होता

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मोहब्बत
अल्फ़ाज़ से बाया न होता
न ही ज़िद पर होता है
ये तो एहसासत है
वक्त के साथ धीमी आंच में पकता
रेशम सिलते वक्त हाथ में सुई चुभता
मोहब्बत का लहज़ा कुछ इस कदर बनता
कदरदानो की कमी नहीं होती
पर दिल जनाब इक ही पर लगता
क़यामत की बात नहीं
क़िस्मत का सिलसिला चलता जाता
जहां दिल लग जाता
वहां से दिल हटना मुश्किल पढ़ जाता
ख्यालों में सिर्फ दिन रात उसी का याद सताता जाता
काफ़िर वक्त इंसान को बनता
मोहब्बत इंसानिया को ही बदल देता
खुशियों के बाग में चमन गुलाल का खिला जाता
बिन करीब रहे भी इबादत बरकरार रखता
सिफारिशों के बिना भी करीबी दिल का बढ़ता जाता
आशा के किरण में दिल जुस्तजू सा होता
वक्त बीतता जाता
फिर भी मोहब्बत कम न होता

–सुचेतना शायरी

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